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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

अथवा
हिन्दी में प्रयोगवादी आन्दोलन की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

प्रयोगवाद शब्द का आशय एवं परिभाषा - सामान्यतः प्रयोग का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द Experiment है किन्तु हिन्दी में प्रयोगवाद शब्द साहित्य की उस धारां विशेष के लिए प्रयुक्त हुआ जो छायावादोत्तर काल में प्रगतिवाद के समानान्तर प्रवाहित हुई और जिसमें अहंवादी भावना का विशेष रूप से प्रकाशन हुआ। प्रयोगवाद की निम्नलिखित प्रमुख परिभाषाएँ की गयी हैं -

डॉ. गोविन्द शर्मा के अनुसार, "प्रयोगवाद हिन्दी कविता की एक नूतन शैली विशेष है, जो कवि द्वारा अनुभूत सत्य को पाठक तक पहुँचाने के लिए विभिन्न प्रयोगों को स्वीकार करती है।'

डॉ. लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय के शब्दों में, "क्योंकि काव्य-शिल्प की दृष्टि से उसमें अनेक नवीन बातों का समावेश हुआ, अनेक प्रयोग हुए, इसलिए इस प्रकार की सभी नवीन कविताओं की प्रकृति को 'प्रयोगवाद' की संज्ञा प्रदान की गई।"

गिरिजा कुमार माथुर के मतानुसार प्रयोगों का लक्ष्य है व्यापक सामाजिक सत्य के खण्ड अनुभवों का साधारणीकरण करने की कविता को नवानुकूल माध्यम देना, जिसमें व्यक्ति द्वारा इस व्यापक सत्य का सर्वबोधगम्य प्रेषक सम्भव हो सके।

प्रयोगवादी साहित्य के उद्भव की पृष्ठभूमि -  यों तो प्रयोग प्रत्येक युग में होते आये हैं, किन्तु प्रयोगवाद नाम उन कवियों के लिए रूढ़ हो गया, जो 'तारसप्तक' के माध्यम से अपने नवीन भावगत एवं शिल्पगत चमत्कारों को लेकर सन् 1943 में साहित्य जगत् में सामने आयी। यह प्रयोगवादी धारा प्रगतिवाद के साथ-साथ विकास पथ पर बढ़ती रही और बाद में इसका पर्यवसान नई कविता में हो गया।

नवीन प्रयोग करने की प्रवृत्ति हिन्दी साहित्य के इतिहास में नई नहीं है। छायावादी युग में ही प्रसाद ने 'प्रलय की छाया' और 'वरुणा की शान्त कछार लिखकर वस्तु, शिल्प एवं छन्द विषयक नवीन प्रयोग आरम्भ कर दिये थे। किन्तु वे पूर्णतः छायावादी कवि थे, अतः उनकी रचनाओं में प्रयोगवाद का केवल हल्का सा पुट ही मिलता है। इसके पश्चात् निराला ने 'कुकुरमुत्ता', 'बेला', 'नये पत्ते' में मुक्त छन्द और सामाजिक यर्थ विषयक नये प्रयोग किये। किन्तु प्रयोगवाद का आरम्भ सन् . 1943 में प्रथम तारसप्तक के प्रकाशन से ही माना जाता है।

सन् 1943 में प्रकाशित तारसप्तक में संग्रहीत कवियों के नाम हैं- मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र भारत भूषण, अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा और अज्ञेय। 'दूसरा सप्तक' सन् 1951 में प्रकाशित हुआ। इसमें सम्मिलित कवि हैं- भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय और धर्मवीर भारती। तीसरा सप्तक सन् 1956 में प्रकाशित हुआ। इसमें संकलित कवि हैं - प्रयागनारायण त्रिपाठी, कीर्ति चौधरी, मदन वात्स्यायन, केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही और सर्वेश्वरदयाल सक्सेना। तीनों सप्तकों में प्रत्येक कवि का जीवन वृत्त, वक्तव्य तथा कविताएँ दी हुई है। प्रत्येक सप्तक के प्रारम्भ में सम्पादक अज्ञेय की भूमिका है, जिसमें उन्होंने अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

प्रयोगवाद नाम इन कविताओं के लिए परिहास में दिया गया। प्रथम सप्तक में संकलित कविताओं के माध्यम से होने वाले प्रयोगों की चर्चा थी। उसी प्रयोग शब्द को पकड़कर आलोचकों ने उपहास के लहजे में प्रयोगवाद नाम दें डाला और बाद में यह नाम चल ही पड़ा। प्रयोगवाद नाम से यह आभास मिलता है कि इन कवियों के लिए प्रयोग ही सांध्य है, परन्तु यह बात नहीं है। अज्ञेय ने दूसरे सप्तक की भूमिका में स्पष्ट लिखा है प्रयोग आप इण्ट नहीं है। वह साधन है, दोहरा साधन है, एक तो वह उस सत्य को जानने का साधन है, जिसे कवि प्रेषित करता है, दूसरे उस प्रेषण क्रिया को और उसके साधनों को जानने का साधन है।'

प्रश्न यह है कि वह इण्ट क्या है। जिसके साधन रूप में नये प्रयोग अपनाये गये हैं। वह सत्य है। मध्यवर्गीय समाज के व्यक्ति का सत्य। प्रगतिवाद ने जिस शोषित वर्ग के जीवन का सत्य उद्घाटित किया था, उसमें अनुभव की प्रामाणिकता न थी। अधिकांश प्रगतिवादी कवियों ने मजदूर और किसान के दुःख-दर्द को सतही तौर से देखा था और इसलिए उनमें शोषित वर्ग के प्रति मौखिक सहानुभूति ही निहित थीष ऐसा लगता था कि वे केवल फर्ज अदा करने के लिए ही इन जनवादी कविताओं की सृष्टि कर रहे हैं। अतः यह बात सामने आई कि हम क्यों न उस यथार्थ का चित्रण करें, जो स्वयं हमारा भोगा हुआ हो। 'स्व' की आँच में तपे बिना भावनाओं को कोरा सैद्धान्तिक विवेचन रहता है और अपने ही दुःख-दर्द को वाणी प्रदान करने पर अधिक ईमानदारी और सच्चाई प्रदर्शित की जा सकती है। अतएव प्रयोगवादी कवि ने अत्यन्त ईमानदारी से अपने भोगे हुए दर्द को चित्रित किया। उसकी कविताओं में विस्तार कम है, गहराई अधिक जन-जीवन का व्यापक समावेश न होने पर भी निजी पीड़ा का सच्चा और ईमानदारी से युक्त चित्र उसने अंकित किया है।

जिस प्रकार प्रगतिवादी कविता पर मार्क्स का प्रभाव है, उसी प्रकार प्रयोगवादी कविता फ्रायड के विचारों से प्रभावित है। फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद का इस पर प्रभाव पड़ा। पाश्चात्य साहित्य में अहंवाद एवं वैयक्तिकता की भावनाओं का उद्दाम वेग से प्रकाशन हुआ था। फ्रायड, युंग एवं एडलर ने मनुष्य की यौन वर्जनाओं को महत्व दिया और साहित्य में दमित एवं कुंठित वासनाओं के प्रकाशन की आवश्यकता बताई। कुछ अन्य पाश्चात्य विचारकों ने अहंवाद एवं वैयक्तिकता का पोषण करने वाले विचार प्रकट किये। फ्रान्स के जोला के कथनानुसार साहित्य में हमें मानव के माँस और मस्तिष्क का विश्लेषण करना है। विश्व कवि वाल्ट हिलटमैन ने कहा है- "मैं आदि से अन्त तक शरीर विज्ञान गाता हूँ। मैं अपने शरीर पर कविता करूँगा, अपनी अपूर्णता के गीत गाऊँगा, ताकि मैं पूर्णता और आत्मा तक पहुँच सकूँ।' पाश्चात्य विचारकों की दमिक कामवासना और घोर अहंवादी प्रवृत्ति को प्रयोगवादी काव्य में प्रश्रय मिला। प्रयोगवाद के प्रवर्त्तक अज्ञेय को लारेन्स और इलियट के विचारों से प्रभावित देखा जा सकता है। इसीलिए यौन वर्जनाओं का उद्घाटन और यौन सम्बन्धी प्रतीकों का प्राचुर्य प्रयोगवादी काव्य को एक प्रमुख प्रवृत्ति रहा है।

प्रयोगवाद के स्वरूप के सम्बन्ध में इस काव्यधारा के उन्नायकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। इस विचारधारा के प्रवर्त्तक अज्ञेय के मतानुसार प्रयोगवाद का लक्ष्य है - व्यक्ति के अनुभूत को सम्पूर्णता में समष्टि तक पहुंचाना, अन्यत्र वे लिखते हैं- "प्रयोगशील कविता में नये सत्यों या नई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक सम्बन्ध भी और उनको पाठक या सहृदय तक पहुंचाने यानी साधारणीकरण की शक्ति भी है।'

धर्मवीर भारती के शब्दों में- "प्रयोगवादी कविता में भावना है, किन्तु मृत भावना के आगे एक प्रश्न चिन्ह लगा है, इसी प्रश्न चिन्ह को आप बौद्धिकता कह सकते हैं। सांस्कृतिक ढांचा चरमरा उठा है और यह प्रश्नचिन्ह उसी की ध्वनि मात्र है।"

गिरिजाकुमार माथुर का अभिमत है "प्रयोगों का लक्ष्य है व्यापक सामाजिक सत्य के जिस सत्य के खण्ड अनुभवों का साधारणीकरण करने में कविता को नवानुकूल माध्य देना, जिसमें व्यक्ति द्वारा इस व्यापक सत्य का सर्वबोधगम्य प्रेषण सम्भव हो सके।'

उपरोक्त उद्धरणों से प्रकट है कि प्रयोगवादी कवियों में घोर वैयक्तिकता अति बौद्धिकता, अति यथार्थवादिता और शैलीगत नवीन प्रयोगों की प्रवृत्ति मिलती है। अज्ञेय ने इस सम्बन्ध में लिखा है - "प्रयोग सभी कालों के कवियों ने किये हैं। यद्यपि किसी एक काल में किसी विशेष दिशा में प्रयोग करने की प्रवृत्ति स्वाभाविक ही है, किन्तु कवि क्रमशः अनुभव करता आया है कि जिन क्षेत्रों में प्रयोग हुए हैं, उनसे आगे बढ़कर अब उन क्षेत्रों में अन्वेषण करना चाहिए, जिन्हें अभी तक नहीं छुआ गया या जिनको अभेद्य मान लिया गया।'

प्रयोगवाद को आलोचकों के अनेक वार झेलने पड़े। कुछ लोगों ने इसे यूरोपीय साहित्य की जूठन बताया। कुछ ने इसे प्रगतिवाद ही की एक शाखा कहकर अभिहित किया और कुछ ने इसे छायावाद की वैयक्तिकता का बढ़ावा माना। कुछ ने इसे और नई कविता को एक बताया। परन्तु इन सभी मतों में भ्रामकता है। प्रयोगवाद पर इलियट, फ्रायड आदि पाश्चात्य विचारकों का प्रभाव होने पर भी यह यूरोपीय साहित्य की जूठन नहीं कहा जा सकता। इसे प्रगतिवाद की शाखा कहना भी उचित नहीं है। प्रगतिवादी कवियों ने शोषित वर्ग की पीड़ा को खुद नहीं भोगा था, जबकि प्रयोगवादी कवियों ने अपनी ही पीड़ा और दर्द को वाणी प्रदान की। प्रयोगवाद और छायावाद की वैयक्तिकता को एक मानना भी भूल होगी।

प्रयोगवाद और नयी कविता को भी एक नहीं माना जा सकता। वस्तुतः प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की धाराएँ समानान्तर प्रवाहित हुई थीं और बाद में इनका पर्यवसान नई कविता में हो गया। प्रगतिवाद शोषित वर्ग को लेकर बढ़ा था और प्रयोगवाद ने दमित वासना तथा अहं को लेकर वाणी दी थी। इन दोनों वादों ने अपने कथ्य बांट लिये थे, जबकि नई कविता में कथ्य की व्यापकता है। " उसने मानव को उसके समग्र परिवेश में अंकित करना चाहा है। प्रयोगवाद की वैयक्तिक कुण्ठाओं में आखिर कवि कब तक गोते लगाता? इसलिए उसने नई कविता की सृष्टि की, जिसमें जीवन की सहजता थी। इस प्रकार प्रयोगवाद और नई कविता एक नहीं है, यद्यपि उनमें पर्याप्त साम्य है और कई अंशों में नयी कविता प्रयोगवाद का नूतन विकास मानी जा सकती है। प्रमुख प्रयोगवादी कवियों और उनके कविता संकलनों के नाम निम्नलिखित हैं-

(1) अज्ञेय -  हरी घास पर क्षणभर, बाबरा अहेरी इन्द्र धनु रौंदे हुए थे।
(2) गिरिजाकुमार माथुर -  मजीर, नाश और निर्माण, शिला पंख चमकीले, धूप के धान।
(3) धर्मवीर भारती -  ठण्डा लोहा, अन्य कविताएं, अन्धा युग, कनुप्रिया सात गीत वर्ष।
(4) प्रभाकर माचवे -  अनुक्षण, स्वप्न भंग।
(5) भरतभूषण अग्रवाल - ओ अप्रस्तुत मन।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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